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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस







कहते हैं न कि जब प्रकृति अपने पर आ जाती है तब दुनिया की हर ताक़त उसके सामने बेबस हो जाती है। हमनें स्वयं को आधुनिक बनाने के चक्कर में अपने अंदर की इंसानियत मारकर जंगलो को काटा जानवरों को उनके घर से बेघर कर दिया। हमारे अंदर पूरी तरह से पशुता भर गई पर हमने इसे आधुनिकता का नाम दे दिया पर सच्चाई चाहे जो भी हो प्रकृति ने समय-समय पर हमें चेतावनी देकर समझाया और जब नही समझे तो ये पालक पलभर में विनाशक बन गयी।

जुलाई 1998!

असम के तेजपुर क्षेत्र के एक छोटे से शांतिप्रिय गांव में! पहाड़ी के नीचे समतल होती जमीन पर कुछ नाममात्र के गिने चुने परिवारों द्वारा बसाया गया यह गांव। इसके एक ओर हरा-भरा जंगल था तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र का नीला जल। प्रकृति के गोद में बसे इस अनुपम क्षेत्र की छवि इतनी सुंदर है कि स्वयं सौंदर्य की देवी भी इससे मोहित हो जाएं।

जुलाई का महीना था हल्की हल्की बारिश हो रही थी, ब्रह्मपुत्र के बढ़ते जल में उफानो को आसानी से देखा जा सकता था। यह एशिया की सबसे बड़ी नदी मानी जाती है, ब्रह्मपुत्र को असम का पालनहार कहें तो कदाचित गलत न होगा।

रात होने को थी, काली रात में बरसात की रफ्तार बढ़ती जा रही थी, इस भयंकर बारिश में कभी कभी डरा देने वाली बिजलियाँ कड़क उठती थी। एक पल को जी जोर से घबरा जाता था सब सांस थामे बारिश के जाने और ब्रह्मपुत्र मैया के शांत होने की प्रार्थना कर रहे थे जो अब तक उग्र रूप धारण कर चुकी थी।

प्रकृति के नियम भी बिल्कुल अजीब है गलती कोई और करता है सजा किसी और को भुगतनी पड़ती है, पहाड़ी के नीचे नदी के किनारे इस छोटे से गांव के जीवन का साधन ब्रह्मपुत्र ही है, आज से पहले जब भी बाढ़ की आशंका होती वे सभी गांव वाले ऊँचे पहाड़ो पर चले जाते थे परंतु आज हल्की बारिश जाते-जाते अचानक से इतनी तेज हो गयी।

रात की भयावहता बढ़ती जा रही थी, रोम-रोम सिहर रहा था हल्की सी गड़गड़ाहट भी सीने में हचचल बढ़ा देती थी। इस लील जाने वाली काली रात में कहीं कोई किसी और दर्द से चीख रहा था, परन्तु उस दर्द में डर नही खुशी का मिश्रण था।

"क्या हुआ..?"

"अहह.. कुछ नही मैं अकेले नही कर सकती।" उस स्त्री के करुणामयी स्वर में घोर निराशा झलक रही थी।

"पर मैं क्या करूँ, मैं कोई \'आई\' नही हूँ।" उस पुरूष का परेशान स्वर उभरा। दोनो शायद पति-पत्नी थे, इस भीषण बारिश के कारण किसी की मदद ले पाना भी सम्भव नही था।

"अहह.... नह....ही! हाये मोरी माई!!" चीखते हुए वह स्त्री निढाल हो गयी। दर्द के मारे उसके गले से भीषण चीखें उबल रहीं थीं।

ब्रह्मपुत्र का पाट बढ़ता जा रहा था। जीवनदायिनी, अथाह जलनिधि को ढोने वाली पालनहारिणी नदी जिसे संसार ने माँ की संज्ञा दी आज वह रक्त की भूखी हो चली, वह अपनी क्षुधा शांत करने पल-पल बढ़ती हुई और अधिक विकराल रूप धारण करती जा रही थी। उसका जल इस घनघोर अंधेरे में भी रक्त के समान दिखाई दे रहा था। अगले ही क्षण बच्चे की किलकारी गूंजी। उन दोनों के खुशी का कोई ठिकाना न रहा, पुरुष ने जल्दी से दौड़ते हुए अपनी पत्नी के सिर को उठाकर अपने गोद में रखा और हल्के हाथों से सहलाते हुए उसे सम्भालने की चेष्टा करने लगा। उसके प्रेमपूर्ण स्पर्श से स्त्री को ताक़त मिली, उसने, उसके हाथ को अपने दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया, थोड़ी ही देर में उसका असहनीय दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा, वह अपने नवजात शिशु को देखकर मुस्कुराने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर पश्चात वह पुरुष नवजात बच्चे को ब्रह्मपुत्र नदी के पास ले जाकर दोनों हाथों से ऊपर उठाया, बच्चे को उठाते हुए उसके चेहरे पर  अपार संतोष का भाव था।  

"हे मैय्या! तुम्हारी कृपा से मुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, अतः इसका नाम तुम्हारे ही नाम पर ब्रह्मेश होगा!"

फिर वह बच्चे को ले जाकर अपनी पत्नी के गोद में सौंप दिया। सारे गांव में कोलाहल मच गया था परंतु इनके परिवार में असीम शांति थी, इनका छोटा सा संसार इस नन्हे मेहमान के आने से महक उठा था, अब इन्हें संसार की कोई सुधि न रही।

"इसकी कितनी प्यारी आंखे हैं न रमा!" पुरुष अपनी पत्नी से मुस्कुराते हुए कहता है, अब छत से बूंद भी टपकने लगी थी।

"बिल्कुल तुम्हारी तरह राम!" स्त्री कहते हुए अपने बच्चे को सीने से लगा लेती है।

कितना खूबसूरत पल होता है न जब इतने दर्द को सहकर भी माँ सिर्फ अपने बच्चे की एक झलक देखकर खुश हो जाती है, उसकी खुशी के लिए हर एक दर्द सहन कर लेती है इसीलिए तो वह माँ है। माँ होना कोई आसान बात नही है, और हमारे लिए प्रकृति भी माँ है जिसके गोद में हम पलते हैं ये नदियां और उपवन भी...!

बरसात रुकने का नाम नही ले रही थी, उस कच्चे घर की एक तरफ की दीवार टूटने लगी अब भागने के अलावा कोई और रास्ता न बचा था। इस भयंकर बारिश में जिसे जो बना, जैसे बना यहां से भागने की कोशिश करने लगा, तभी किसी ने राम के घर का दरवाजा खटखटाया।

"क्या हुआ तुम्हें चलना है कि नही।" जोर जोर से चिल्लाते हुए वह बोला।

"पर हम भागकर कहाँ जाएंगे राघव! हमारा घर तो यही है" बाहर आते हुए राम अतिचिन्तित स्वर में बोला।

"कही भी, फिलहाल हमें भागना ही होगा, भाभी जी कहाँ हैं? कहते हुए वह अंदर घुस गया, वह बुरी तरह से भीग चुका था, रमा की गोद में बच्चा देखकर वह हैरान रह गया उसने इशारे में राम से पूछा, राम ने मुस्कुराकर इशारे में समझा दिया जिसे जानकर राघव के चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गयी। बच्चा अब शान्ति से माँ की गोद में लेटा हुआ था, माँ का दूध रूपी अमृत पीकर संसार से अनभिज्ञ वह बालक माँ की गोद में ही सो चुका था, रमा उसे एक चादर से लपेटे हुए थी।

"अब तो हमें और जल्दी भागना होगा  राम! अब हम बरसात रुकने का इंतजार नही कर सकते।" राघव चीखते हुए कहता है, राम बस उसे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखता रहता है। राघव उन दोनों को खींचकर बाहर लाते हुए जल्दी-जल्दी भागने लगता है। अब तक गांव की जमीन पर एक फ़ीट ऊँचा पानी बहने लगा था, सारे गांव वाले बेतहासा भाग रहे थे। राघव ने उन्हें चिल्लाकर राम के बेटे के बारे में बताया। कुछ गांव वाले उसे शैतान का दूत ठहराने लगे, जिसके कारण यह भयंकर बाढ़ आई जिससे रमा को गहरा धक्का लगा, राम भी अब उनके साथ नही जाना चाहता था।  जिन गांववालों के सुख दुख में उसने हरदम साथ दिया आज उन्होंने उसके अबोध शिशु को कुछ घण्टे पहले जन्मे बच्चे को श्रापित करार दिया। सच में संसार में अच्छाई का कोई मोल नही कोई अर्थ नही! क्योंकि दुनिया सिर्फ आपकी बुराई करना चाहती है।

रमा और राम ने गांव के दल से रास्ते बदल लिए, राघव भी अपने मित्र के लिए भागता हुआ आया, ब्रह्मपुत्र की धाराओं का उफान अब चरम पर था, उसने एक क्षण में उस गांव को लील लिया। गांववाले गिरते पड़ते भागते रहे परन्तु मृत्यु से कौन जीत पाया है कुछ लोग काल के गाल में समा गए। यह देखते ही रमा की चाल और तेज हो गयी वह अपने बच्चे को लिए भागने लगी, राम और राघव भी उसके साथ भाग रहे थे परंतु अब बचना नामुमकिन था।

"अब हम नही बच सकते" रमा बुरी तरह हाँफते हुए कहती है। "मैं बहुत थक गई हूँ। राम तुम मेरे बेटे को बचा लो।"

"पर मैं तुम्हे छोड़कर नही जा सकता रमा।" राम के स्वर में बहुत दर्द था।

"तुम्हें यह करना ही होगा राम! हमे इस बच्चे को सुंदर भविष्य देना है।" रमा पागलो की तरह कांपते हुए शिशु को उसके पिता के गोद में दे दिया।

"अब इस बच्चे की जिम्मेदारी तुम्हारी है मित्र!" राम अपने कलेजे के टुकड़े को अपने अभी जन्मे बेटे को राघव के हवाले करता हुआ बोला। "इसका ख्याल रखना मेरे बन्धु!"  इस बारिश में भी उसकी आँखों से बहते आँसू पहचाने जा सकते थे। राघव एक पल को ठहरा जैसे कुछ कहना चाहता हो पर उसकी आवाज जैसे हलक में ही अटक गई थी अगले ही क्षण वह बच्चे को अपने सीने से चिपकाए तेजी से भागा, अपनी माँ से अलग होकर बच्चा जोर-जोर से रोने लगा था, ईश्वर भी विचित्र है एक नवजात शिशु को भी यह क्षमता दे देता है कि वह माँ के स्पर्श को पहचान सके।

राम, रमा को एक टूटे हुए पेड़ के पास ले जाकर लिटाया, वह बेहोश होती जा रही थी, राम उसके सिर को अपने जांघो पर रखकर उसके माथे को सहलाता है। "हमारा बच्चा अब सुरक्षित है रमा! राघव उसपर कभी कोई आँच नही आने देगा।" 

रमा हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की पर वह बेहोश हो चुकी थी। राम, रमा रमा कर चीखता रहा बादलो के गड़गड़ाहट और बिजलियों के कड़कड़ाहट के बीच यह स्वर गूंज रहा था।

काली रात ढल गयी, गांव पूरी तरह से तबाह हो चुका था, चारो तरफ गांववासियों और मवेशियों के शव बिखरे हुए थे, करीबन 20-25 लोग मारे गए और सैकड़ो बुरी तरह से घायल थे। पहाड़ी के नीचे टूटे हुए पेड़ के पास एक दूसरे सी लिपटी राम और रमा की लाशें एक दूसरे के प्रेम पर न्यौछावर होने का इतिहास लिख रही थी। एक बड़ा सा पत्थर राम के पीठ से लगकर रुका हुआ था जो शायद बाढ़ के कारण सरककर यहां आ गया था, राम ने अपनी जीवनसंगिनी को बचाने की बहुत कोशिश की होगी और जब सफल न हुए तो दोनों ने एक दूसरे के लिए प्राण त्याग दिए, और यह दिव्य प्रेम लिए दोनों दिव्यलोक सिधार गए।

सरकार ने सुरक्षा दस्ते भेजे, बहुत से लोगो को बाढ़ से बचा लिया गया। लोगो ने सिर्फ अपना दर्द देखा किसी ने भगवान को कोसा तो किसी ने उनका शुक्रिया अदा किया। वक़्त बीता और ये कहानी किसी पन्ने पर भी बाकी न रही।

22 साल बाद..

दिल्ली यूनिवर्सिटी में

दो युवक आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे।

"अबे तेरा नाम विस्तार किसने रखा? किसका विस्तार करके आया है तू।" अपने बाएं हाथ में एक किताब लहराते हुए युवक बोला।  बालों को शानदार स्टाइल से कटाया हुआ था, कपड़े काफी महंगे और काले जूते नीली शर्ट और काली जीन्स पर फब रहे थे, उसके दाएं हाथ में ब्लू कलर का चश्मा था। कुल मिलाकर यह लड़का काफी स्टाइलिश और चंचल प्रतीत होता है।

"अबे अमन! रोज रोज एक ही मजाक मत किया कर।" दूसरा लड़का, जिसे अमन ने विस्तार कहा उसने चिढ़ते हुए कहा। भरे-पूरे जिस्म और ऊंची कद-काठी का यह नौजवान साधारण कपड़ों में भी गजब लग रहा था। इन दोनों की जोड़ी पूरे कैम्पस में फेमस थी,  बहुत से लड़के अमन से बहुत जलते थे पर उसके साथ विस्तार के होने के वजह से बिचारे कुछ नही कर पाते थे।

"तू जिस दिन बता देगा किसका प्रचार मतलब विस्तार किया मैं ये मजाक करना छोड़ दूंगा।" अमन अपनी कमर को लचकाकर झुकते हुए बोला।

"मतलब दूसरा मजाक उड़ाएगा।" विस्तार से घूरते हुए बोला।

"वो क्या है न भाई मेरे पास हेलीकॉप्टर तो है पर उड़ाना नही आता और मैं तेरी तरह किसी का विस्तार भी तो नही करता।" अमन भोला बनने की एक्टिंग करता हुआ बोला।

"तो जाकर सीख ले।" विस्तार रूठते हुए अपना मुंह टेड़ा करता है। कैम्पस में सभी इनकी नोंक-झोंक से वाकिफ थे मगर मजाल नही थी कि इनके दोस्तो के सिवा कोई और इनका मजाक उड़ा सके।

"अरे यार अब रूठ मत, ये अपना फेस देख इतना हैंडसम मुंडा होकर कबाड़ा कर लिया इसका।" अमन ने अपने आईफोन का सेल्फी मोड ऑन करके विस्तार को उसका चेहरा दिखाया और जोर जोर से हंसने लगा। विस्तार अमन के व्यवहार से परेशान होने लगा, फिर उसने भी हँस दिया।

"हुह हमेशा एक ही बहाना!" विस्तार जानबूझकर मुँह फूला लिया।

"बस कर मेरे भाई वरना लड़किया तुझसे नखरे की ट्रेनिंग लेने आया करेंगी, और हाँ मैं तेरा कोई बॉयफ्रेंड-वरेंड नही हूँ।" विस्तार को चिढ़ाते हुए अमन बोलकर भागते हुए बोला।

"तेरी तो…!" विस्तार अमन के पीछे भागा।

"ये दोनों कितने भी बड़े हो जाये रहेंगे हमेशा बच्चे ही।" व्यंग्य करते हुए एक अधेड़ बोले, उनका चेहरा अमन के भविष्य रूप के समान लग रहा था, महंगे सूट-बूट, बायीं कलाई में महंगी घड़ी और बगल में स्टाइलिश ब्लैक कलर की महंगी कार।

"अरे डैड आप..!" पैर छूते हुए अमन चौंककर बोला।

"अंकल आप! आपने क्यों तकलीफ की हमें बुलवा लेते या किसी को लेने भेज देते।" विस्तार भी झुककर पैर छूता है।

"अपने बच्चों से मिलने आने में तकलीफ कैसी! हम तुम्हें यहां इसलिए पढ़ा रहे हैं ताकि तुम में कभी यह घमण्ड न आये कि तुम अमीर खानदान से हो, कोई भी दौलत से अमीर नही होता दिल से होता है। मैं चाहता तो हेलीकॉप्टर से मिलने आ जाता पर उसमें वह खुशी नही मिलती जो तुम दोनों को साथ आपस मे लड़ते-झगड़ते देखकर मिलती है।" अमन के पापा बोले।  "तुम्हारे पापा ने मुझे उस दिन सौंपा जब तुम बस एक दिन के थे, मुझे तुम्हारे लिये कमाई करनी थी और फिर मैं अमन की मम्मी से मिला, हम दोनों ने दिन रात मेहनत की। और देखो आज मैं एक अरबपति और सफल बिज़नेसमैन हूँ।" वे विस्तार की तरफ इंगित होते हुए बोले। "मैं वह भयावह रात नही भूल सकता….!" अचानक से वे चिंहुके और बोलते बोलते रुक गए, उन्हें लगा कि कुछ गलत बोल दिया। "अरे कार में बैठो सारी बात यही कर लेना है क्या? अभी कोई देखा तो परेशानी खड़ी हो जाएगी। मैं एयरपोर्ट से सीधा यहां इसलिए नही आया हूँ कि बस देखकर चला जाऊं, मैं तो घर ले जाने आया हूँ।" अमन के पापा उन दोनो को घूरते हुए बोले और जल्दी से कार में दाखिल हो गए।

"पर क्यों? क...क्या..." बोलते हुए विस्तार गूँ-गूँ करने लगा। अमन उसका मुंह पकड़कर कान में कुछ बोलता है।

"ओ सॉरी सॉरी भूल गया था!" विस्तार अपराधी भाव से बोलता है। "22 जुलाई है आज!" अमन की ओर देखकर ऐसे बोला जैसे उसे यकीन न हो रहा हो कि आज यही तारीख है।

"तुम हमेशा अपना ही जन्मदिन भूल जाते हो पर तुम्हारे अंकल तुम्हें बचकर जाने न देंगे।" कहते हुए उन्होंने हल्के से मुस्कुराया। कार हाईवे पर काफी तेज गति से दौड़ रही थी।

"पर हम कहाँ जा रहे डैड।"

"मैंने यहां से थोड़ी दूर एक नया फॉर्महाउस लिया है, तुम्हारी मॉम और बहन वहां पहुँचती होंगी, हमें भी जल्द ही वहां पहुँचना है।" उसके डैड बोलें, अमन यह जानकर बहुत खुश हुआ कि \'उसके पापा ने उन दोनों के लिए एक अलग फॉर्महाउस भी ले लिया है जो दिल्ली से थोड़ी ही दूर यमुना नदी के किनारे है।\'

कार तेज रफ्तार से दौड़ते हुए मैन रोड को छोड़कर साधारण सड़क पट्टी पर उतरती है, थोड़ी दूर चलने और दाएं-बाएं मुड़ने के बाद कार एक घर के सामने रुकती है जिसके ऊपर बड़े शब्दों में \'राघव विला\' लिखा हुआ था। गेट पर कई कर्मचारी मौजूद थे, माहौल देखकर ऐसा लग रहा था मानो जश्न की तैयारी है, राघव खुश होते हुए अपनी पत्नी और बेटे से मिले। अमन अपनी माँ और विस्तार ने अपनी माँ समान आंटी के चरण स्पर्श किया और फिर दोनों अपनी प्यारी बहन कंगना के गले लग गए।

"विस्तार भैया का थोड़ा और विस्तार हो गया।" कहते हुए कंगना छत की ओर भागने लगी, दोनों अपनी बहन की इस हरकत पर हंसने लगे, राघव और उनकी श्रीमती पद्मा भी अपने बच्चों की प्यारी शरारत को देखकर हंसने लगे।

"उसको कभी ये पता न लगे कि वो कौन है! आज तो मेरे मुंह से निकलने ही वाला था किसी तरह मैंने खुद को रोका।" राघव चिंतित स्वर में अपनी पत्नी से बोलते हैं।

"आप चिंता मत करो राघव! जिस तरह आपने अपने बच्चों को डाउन टू अर्थ रखा है उन्हें यह जानने की कभी जरूरत नही पड़ेगी।" पद्मा ने मुस्कुराते हुए कहा।

"मैं भी ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ, वो रात जब भी याद आती है मेरा दिल बेचैन हो जाता है। कैसे भूल सकता हूँ आज से 22 साल पहले की वो रात!" राघव की आँखे नम हो गयी।

"आप फिक्र न करो। सब ठीक होगा।" पद्मा उनको दिलासा देने लगीं।

"मैं भी ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ।" राघव बोला।

"अंकल ऊपर आइये!"

"हाँ डैड आप तो पक्का आइये, आपके बिन केक कैसे कटेगा आपका ही तो बर्थडे है!" कंगना ने ताना मारा।

"रुक जा तेरी तो..!" विस्तार ने उसके ऊपर फूल फेंककर मारा।

"क्या कर रहा है भाई! फूल से मार रहा चोट लग गयी तो हमें महीने भर हॉस्पिटल में रहना पड़ेगा इसे लेकर, पिछली बार का याद है न मैं तो नही रहने वाला इसके साथ..!" अमन, विस्तार को पकड़ते हुए बोला।

"ये बच्चे भी न!!" पद्मा खीझकर बोली, अंदर ही अंदर हंसी का गुब्बार भी छूट रहा था।

"हैप्पी बर्थडे टू यू विस्तार!" खूबसूरत म्यूजिक के साथ सबका यही स्वर गूंजने लगा। विस्तार ने केक काटकर सबसे पहले अंकल को खिलाया और फिर आंटी को उसके बाद बड़ा सा 4-5 किलो का टुकड़ा लेकर कंगना के पीछे भागने लगा।

"अरे भागती कहाँ हो रुको जरा!" कहते हुए विस्तार ने सारा केक उसके ऊपर पोत दिया।

"वाह भाई, भाई की तो कोई इज्जत ही न रही।" अमन ने रूठने के अंदाज में ताना मारा। विस्तार भागते हुए आकर उसे गोद मे उठा लिया, इससे पहले अमन ना नुकुर करता उसने उसे बाकी के बचे हुए केक पर पटक दिया।

"हद है!" पद्मा जी अपने सर को पकड़ते हुए बोली।

"मैं जानता था यही होगा, इसलिए तो बाकी मेहमानों के लिए ऑलरेडी अलग से केक मंगवा लिया है।" राघव जी मुस्कुराते हैं।

"विस्तार तेरा विस्तार तो मैं करूंगी।" कहते हुए कंगना उसके ऊपर केक फेकती है।

"नही रुक वो मेरा शिकार है।" अमन कंगना को पकड़कर रोकते हुए कहता है। अब तक तीनो के तीनों केक से नहा चुके थे।

"हे भगवान कोई इनको बताओ केक खाया जाता है, केक से नहाया नही जाता।" पद्मा अपना पैर पटकते हुए बोली, फिर तीनो जाकर उनके गालों पर भी केक पोत दिया और राघव की ओर बढ़ने लगे, पर उनका उखड़ा हुआ चेहरा देखकर तीनो रुक गए, वे तीनों उन्हें ऐसे घूरते हुए देख रहे थे जैसे उनसे इजाजत मांग रहे हों।

"अरे लगा लो बच्चों।" राघव ने उनकी हालत जोर से हंसते हुए कहा।

"इसको कहते हैं जश्न! हीहीही…!" अमन ने खिखियाकर हँसते हुए कहा।

"पर विस्तार भैया का अभी और विस्तार होगा।" कंगना ने टेबल पर पड़ा सारा केक विस्तार पर दे मारा।

"चलो;  अब इनका यही होगा" राघव, पद्मा से बोले। "टाइम से सो जाना कल तुम तीनो को कॉलेज भी जाना है।" वे उनकी ओर मुखातिब होकर बोले।

"हाँ! ठीक है। उफ्फ यार एक दिन की भी रेस्ट नही।" तीनो एक स्वर में बोले और वहीं सोफे पर पसर गए।

क्रमशः…..


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20 Comments

Arman

26-Nov-2021 11:48 PM

Very good

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thank you

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Hayati ansari

26-Nov-2021 10:26 PM

Good

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thank you

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Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:04 PM

Nice story ..

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thank you

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